Tuesday, June 19, 2018

साई झूलेलाल जाप

                               जाप
 
                     श्री अमर लाल दा
प्रथमे नमस्कार गुरु  देवा, उतम अलख निरंजन देवा |
नीरभउ पुरख नीरभउ स्वामी, अमर अजूनी अन्तर्यामी |
अकाल मूरत निरंजन राइया, जोती सरुप प्रभ सरब समाया |
सतचित आनंद रूप अरूप, अति अबनास निहचल रूप |
अमर लाल प्रभ कृपा धारी, नाम नाम नित जपहु मुरारी |
वरुण देव नदियां का राजा, सगल जगत जिन कीयो साजा |
गुर दरया ओ सरब का दाता, अमर लाल सब थाईं जाता |
माणक मोती हीरे लाल, लहर भरे सो रहे निहाल |
जल महिं जोत जोत जल माहीं, ओतपोत दूजा को नाही |
अमर लाल प्रभ कृपा करे, दूजी मति सब मनते हरे |
जल महि परमेश्वर का वासा, सगल जगत जल है परगासा |
जलते उपज्यो सब संसार, अमर लाल पूरन करतार |
गुरु दरयाओ स्वामी मेरो, मैं अनाथ प्रभु तुमरो चेरो |
अमर लाल मैं शरण तुम्हारी, रक्षा करो पुरख हमारी |
अमर लाल बलिहारी मीत, आठ पहर सिमरहु कर प्रीत |
अमर लाल के भरे भण्डार, सर्ब जिया पूरण पृतपाल |
जल नारायण जल हे गोबिन्द, जल ही माधो जल हे मुकिंद |
जल की सेवा जल की पूजा, एक निरंजन अवर न दूजा |
जल गंगा जल कांशी मानो, अठसठ तीरथ जल ही जानो |
अमर लाल पूरण सुख सागर, आदि जुगादि ब्रहमा रतनागर |
सब किछ जल से उत्पति होए, जल बिन कारज सरे न कोए |
जल ही नाचे जल ही गावे, जल ही ताल मृदंग बजावै |
जल है पूरक जल है नारी, जल है जोगी जती घरबारी |
जल है मोनी जल है ध्यानी, जल है पंडित जल है ज्ञानी |
अमर लाल तुमरी शरनाइ, जहां कहां जल रहियो समाए |
जल में ही बसे आप निरंकार, सचा तखत साचा दरबार |
मैं भुला तू बख्शन हार, मैं मांगू तू देवण हार |
अमर लाल जोत जगमगे, सूरज कोटि देख सब लजे |
चमत्कार जोत का भरा, कई कोटि दीपक करे उजाला |
ब्रहमा विष्णु महेश त्रइ देवा, सगले करदे तेरी सेवा |
सगल देवता आस भवानी, अमर लाल का जाप जपानी |
अमर लाल प्रभ गहिर गम्भीर, पास वडेरा पुरुष वजीर |
अंतरयामी सब किछ जानै, अन बोलत ही हाल पछानै |
सरब जीया का सार संभालै, अमर लाल सब ही पृतपालै |
जैसी मनसा कर कोई आवै, तैसा ही फल सहजे पावै |
अमर लाल बलिहारी तोंही, भजन आपना दीजै मोही |
सदा भजऊं मम तुम को मीत, तुम चरनां सिऊं लागी प्रीत |
जो जन जपे तुम्हारा नाम, सिमर सिमर पावे बिसराम |
तू दरियाओ जगत तुझ माहीं, हे प्रभ जो तुझ बिन कछु नाहीं |
अठ सठ तीरथ का अश्नान, जो जन करे तुम्हारा ध्यान |
अमर लाल का जपिये जाप, दुःख रोग बिनासै संताप |
ज्ञान तुम्हारा सब दुःख बिनासै, कोटि जनम के पातिक नासै |
जो जन करे अमर की सेवा, सो जन खावे मीठा मेवा |
जो जन जपे अमर दरियाओ, मुक्ति होए भउ काल न खाउ |
जल पति जिन्दा जाहिर पीर, थलाँ टोहां विच निर्मल नीर |
अलील पुरुष पानी दरियाओ, ज्योति सरुप प्रभ रिहा समाए |
ब्रह्म रूप उतम जो पानी, जगत तरंग तुम आन समानी |
अमर लाल मैं बलि बलि जाऊं, कर कृपा तुमरा जस गाऊं |
आसाओ आवनि ते फल पावन, तुमरे दरि बिरथा नहीं जावन |
एक पुरख आया कर आस, अमर लाल जल पत के पास |
तुम सुन हो पूरन पृतपाल, मेरी आस पुजावो लाल |
दूध पुत्र धन माया दीजै, एह कारज मेरा सब कीजै |
बैठ रिहा दरियाओ किनारे, दरियाओ दरिओं मुखहुँ उचारे |
अन्न ना खाया पानी न पीता, आठ दिवस ऐवें ही बीता |  
तब दरिओं सिउ बनी आई, जो तू अजहुँ पर्ण नाही |
बिना नार सूत कैसे होए, नार परनिउ सूत भी तुम होए |
धन माया ढूढ़ ही तुम लेऊ, नार परनिउ सुत भी तुम देउ |
तब उन पुरख वचन उचारिया, अमर लाल सो गुर हमारिया |
बिना नार सूत दीजै मोहे, तब मैं दाता जानू तोहे |
जब उन ऐसी बात उचारी, तब दरियाओ प्रभ कृपा धारी |
दरियाओ लैहर सिउ बालक धरिया, सुन्दर बालक बाहर आई पड़िया
तब उन बालक लिया उठाए, कपड़े बीच लपेटिया जाए |
बालक देखिया परम अनूप, सोहनी सूरत सुन्दर रूप |
               दोहरा;-
 सज्जे हाथ अँगूठड़ा, बालक पेवे खीर |
मन में निश्चे जानिओ ए दोनों गुरु पीर ||
                  चौ॰:-
पूरण एक प्रभ कला जनाई, माया ने एक लहर दिखाई |
सोना रूपा हीरे लाल, माणक मोती रतन रसाल |
माया देखी अपर अपार, अमर लाल के भरे भण्डार |
सरब जियां पूर्ण पृतपाल |
जैसी उनके मन में आई, माया लालन ते तृप्त अघाई |
पांच गऊ निकसिया विच नीर, पांचो के थन तृप्त जो खीर |
जो उन मांगिया सो उन पाया, अमर लाल प्रभ दान दिवाया |
दूध पुत्र धन माया पाई, अमर लाल प्रभ दात दिवाई |
लेकर अपने घर को गया, अमर लाल प्रभ कीन्ही दया |
ऐसा दाता अमर गुसाईं, सदा रहूँ मैं तुम शरनाई |
सुनहौ बालक भया जवान, सुमरे अमर लाल भगवान |
हे भगवान दे बालक मीत, सदा आनंद निहचल रीत |
पिता पूत दोनों वडभागी, जाकी प्रीत अमर सिउ लागी |
जो एह कथा सुने और गावे, दुःख पाप तिस निकट न आवे |
अमर लाल की कथा कहानी, पढ़ते सुनते सुधरे प्राणी |
अमर लाल से प्रीत जो करे, जन्म जन्म के पाप सब टरे |
जय दरियाओ अमर गुरदेवा, जल प्रभ जिन्दा अलख अभेवा |
मैं अनाथ प्रभ शरण तुम्हारी, ठाकर दरियाओ बख्श लै उपकारी |
जाप श्री अमर लाल जी का जो नर पढ़ै,
चित धरे, भवसागर तर जावै |
बिना जोग ततहे, बिना जोग ततहे, बिना जोग ततहे |
जाप श्री अमर लाल जी का सम्पूर्ण हुआ |
       श्री दरियओ जी सत् है |

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