Tuesday, June 19, 2018

साईं झूलेलाल चालीसा

                   ||श्री झूलेलाल चालीसा ||

                    नित्य प्रति पढ़े, प्रेम प्रीत चित ले |
                 ताके कार्य सफल करें, श्री झूलेलाल जाय ||

                          || दोहा ||
जय जय जय जल के देवता, जय जय ज्योति स्वरुप |
             अमर उदेरोलाल जय, झूलेलाल अनूप ||

                         || चौपाई ||
रतनलाल रतनानी नन्दन, जयति देवकी सुत जग वन्दन |
दरियाशाह वरुण अवतारी, जय जय लाल साईं सुखकारी |
जब जब होए धर्म की भीर, जिन्दा पीर हरे जन पीरा |
संवत दस सौ सात मंझारा, चैत्र शुक्ल द्वितीय शुक्र वारा |
ग्राम नसरपुर सिन्ध प्रदेष, प्रभु अवतारे हरे जन क्लेशा |
सिन्धु वीर ठट्ठा रजधानी, मिरखशाह नृप अति अभिमानी |
कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी, यवन, मलिन मन, अत्याचारी |
धर्मान्तरण करे सब केरा, दुखी हुए जन कष्ट घनेरा |
पिटवाया हाकिम ढिन्नढोरा, हो इस्लाम धर्म चहुओरा |
हिन्दू प्रजा बहुत घबराई, इष्ट देव की टेर लगाई |
वरुण देव पूजे बहुभांती, बिन जल अन्न गए दिन राती |
सिन्धु तीर सब दिन चालीसा, घर घर ध्यान मनाए ईशा |
गरज उठा नद सिन्धु सहसा, चारों ओर उठा नव हरषा |
वरुणदेव ने सुनी पुकारा, प्रकटे वरुण मीन असवारा |
दिव्या पुरुष जल ब्रह्म सरूपा, कर पुस्तक नवरूप अनूपा |
हर्षित हुए सकल नर नारी, वरुणदेव की महिमा न्यारी |
जय जयकार उठी चहुंआरा,गई रात आने को भौंरा |
मिरखशाह नृप अत्याचारी, नष्ट करूंगा शक्ति सारी |
दूर अधर्म, हरण भू भरा, शीघ्र नसरपुर में अवतारा |
रतनराय रतनानी आँगन, खेलूंगा, आऊंगा शिशु बन |
रतनराय घर खुशी है आई, झूलेलाल अवतारे सब दे बधाई |
घर घर मंगल गीत सुहाए, झूलेलाल हरन दुःख आए |
मिरखशाह तक चर्चा आई, भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई |
मंत्री ने जब बाल निहारा, धीरज गया ह्रदय का सारा |
देखी मंत्री साईं की लीला, अधिक विचित्र विमोहन शीला |
बालक दिखा युवा सेनानी, देखा मंत्री बूढी चाकरानी |
योधा रूप दीखे भगवाना, मंत्री हुआ विगत अभिमाना |
झूलेलाल दिया आदेशा, जा तव नृपति कहो संदेसा |
मिरखशाह नृप तजे गुमाना, हिन्दू मुस्लिम एक समाना |
बंद करो निज अत्याचार, त्यागो धर्मान्तरण विचारा |
लेकिन मिरखशाह अभिमानी, वरंदेव की बात न मानी |
एक दिवस हो अश्व स्वर, झूलेलाल गए दरबारा |
मिरखशाह नृप ने आज्ञा डी, झूलेलाल बनाओ बंदी |
किया स्वरुप वरुण का धारण, चारो ओर हुआ जल प्लावन |
दरबारी डूबे उतराये, नृप के होश ठिकाने आए |
नृप तब पड़ा चरण में आई, जय जय धन्य, धन्य जय साईं |
वापिस लिया नृपति आदेशा, दूर दूर सब जन क्लेशा |
संवत दस सौ बीस मंझारी, भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी |
भक्तों की हर आधी व्याधि, जल में ली जलदेव समाधि |
जो जन धरे आज भी ध्याना, उनका वरुण करे कल्याणा |
    चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
    पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ||

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