Saturday, July 14, 2018

प्रार्थना तथा अरदास

               प्रार्थना तथा अरदास 
                श्री अमर लाल जी 

श्री अमर तव शरण सच्चा उडेरा, शरण दी लज्जा तैंकू |
डाढा समां लगा कलयुग दा, हरी दा नाम दे मैकूं |
तू लाल स्वरूपी सदा निहाला, निस दिन सिमरां तैंकू |
सुन्दर सेवक बिन लाल उडेरा, प्रभु होर न जाना कैकुं |
मैं विच गुनाह तकसीर उडेरा, साईं तू नाम दी लज्ज चा पाली |
बख्श गुनाह भई गुस्ताखी, साईं तू अपना विरद् च पालीं |
हाल हीला सब तैंकू मालूम, इहां आपदा सब चा टाली |
सुन्दर सेवक शरण उडेरा, सदा दृष्टि कृपा कर पालीं |
लख अपराध करे जो सेवक, बहुर करीं सतारी |
तुझ बिन और नहीं कोई दूजा, साईं मैं किस दी आस अधारी |
अपना नाम दिवाईं जिंदपीर उडेरा, साईं मैं तेरा नाम चितारी |
सुन्दर सेवा रख नाम दी लज्जा, विरद् की लाज सम्भारी |
‘पुनः शब्द दी लाली खुल रही खुल लाली’ |
गुरु कूं मिली सही कर देखां, नित्य दर्शन लाल दिखावीं |
उन बिन नही चांदना होसी, तोरे कोटि फिरे जप माली |
सुन्दर सेवक गुरु दी करुणा, सदा पूर्ण कृपा निराली |
श्री लाल उडेरा तेरी लाल कमानी, तेरा घोड़ा वी लाल दिसीवे |
वस्त्र भी लाल, लाल भी लाल, शोभा मन धरीवे |
सुन्दर लाल, लाल भी सुन्दर, लाल देखे नित जीवे |
श्री लाल उडेर तू लाल कहावीं, सुन्दर लाली लाला |
वस्त्र भी लाल लाल भी लाल, शोभा बनी विशाला |
सुन्दर नयन अलक अरु, कुण्डल सूरज झाला |
लटकल ग्रीवा ते प्रभु जी तोरे, तेरे गल मोतियन की माला |
दासन दास सदा चिर जीवो, श्री लाल उडेरा मेरा लाल करोले वाला |
इहां आस दास की आहे जो दर्शन लाल दिखावीं |
दे दर्शन नित्य चरण ही सेवूं, धिलसा दूर करावीं |
इह जो जोड़ सुदामे वाला, तीवें जोड़ चा जुड़ावीं |
सुन्दर सेवक शरण उडेरा, सब दुःख दूर करावीं |
परम भाग सेवक बड़भागी, जिन्ह लाल दा दर्शन पाया |
दर्शन पाय होये कुल तीर्थ, कोटि तीर्थ फल पाया |
जन्म जन्म भय कोई नहीं, जिन्ह ह्रदय में दर्शन पाया |
सुन्दर सतगुरु साहिब डिठा, जिन्ह लाल जने सत् गाया |
औखियां वेले आई उडेरा, सेवक कम पियाई |
भक्तां दी लाज एवें चा रखी, जिवें द्रौपदी दी लाज रखयोई |
शरण पद्यो प्रहलाद छुड़ायो, जिवें हिरण्यकश्यप बेदियोई |
सुन्दर सेवक किस डर जाऊं उडेरा, मैं तेरे दमन तले पियोई,
साईं मैं तेरे दमन तले पियोई ||
                   अरदास:-
जय जय जिन्दा श्री गुरुदेव बारम्बार करूं प्रणाम |
सुर नर मुनि जन पार ना पावें, सन्त जन धारें ध्यान |
जोत स्वरुप, अकाल मूर्ति, इश्वर अजूनी अंतरयामी |
विशबम्भर तू विश्व का पालक, विश्वनाथ तू विश्व का स्वामी |
श्री वरुण देव वरदायक हो तुम, विष्णु रूप होई सर्वव्यापक |
हिरणयाक्षप सहाइ पृथ्वी माता जल पर थापी |
त्रिलोकीनाथ, दीनानाथ, तू सर्व का स्वामी |
आदि पुरुष तुम वरुण देव हो भक्तन के रक्ष पाल स्वामी |
सब सन्त ब्राह्मण शरण पड़े हैं, तव चरण कमल चित्त धारी |
पलो पाए आशीर्वाद मांगे, सब सेवक सदा सुखारी |
चौ॰- साचा नाम तेरा तू शहन-शाह, श्री हाजरा हजूर तू बेपरवाह |
करूं अब अरदास, सतगुरु तुमरे पास, हमरे कारज होवन सकले रास |
ठक्कर पुगर साईं कृपा कीजे, दास जन चित्त चरणन दीजे |
                     दोहा-
ठक्कर पुगर जी बेनती, निज सेवक बख्शो भूल,
कर अरदास आशीर्वाद मांगू, सच्ची दरगाह विच होवे कबूल ||
जय जय विष्णु देव जलराई, जय जय शिखर सागर जलशाई |
शिखारायण जय सागर स्वामी, जन्म नसरपुर अन्तर्यामी |
जय जय दुष्ट संहारक लाल, जय जय हिन्दू करी प्रतिपाल |
जय जय धर्म रक्षक धरणीधर, जय जय रोग नाशक धनवंतर |
तेरा अंत ना पारावार, पुगर जावें बली बली हार |
जयकारा- बोले सो फल लेव- सत् सत् श्री वरुण देव |
बोले सो अक्षय- श्री अमर ‘लाल’ की जय |
बोले सो अवधूत- जय जय ज्योति स्वरुप ||              














जय जय जलदेव, वरुण सुख सागर |
जगमग ज्योति जले उजियागर ||

नमः जोत प्रकाशमय चेतन जल को रूप |
अगम अगाध अपार है सहज सरूप अनूप ||

नमस्कार गुरुदेव प्रति सर्वव्यापक सोई |
जल थल माहि पूरन सकल तिस बिन और न कोई ||

विघ्न हरे मंगल करे सर्व करें कल्याण |
घर बहार रक्षा करे श्री अमर लाल भगवान ||

जय जय जय जल के देवता जय जय ज्योति स्वरुप |
श्री अमर उदेरो लाल जय श्री झूले लाल अनूप ||

कहों कहा महिमा अनन्त सतगुरु कहत कहहि |
श्री अमर लाल अस्तुति कछु कहत बखानो ताहि ||

श्री वरुण देव ज्योति स्वरुप, सकल सृष्टी आधार |
जिसको मैं वंदन करूं, जो हैं मोक्ष भोग दातार ||

Tuesday, June 19, 2018

छंद साईं झूलेलाल

                         || छंद ||

भीड़ पड़ी पंचम सकल, अमरलाल शरण जाये पड़ी |
जंजू टिके की रखे लज्या, इस विध सकल पुकार करी |
वृद्ध की लज्या राखो साहिब, कौन साहिब तुझ बिन अवरी |
सतयुग द्वापर त्रेता माहो, दीनन तुम अवतार धरी |
जब जब असुरन ते दुःख पायो, तब तब ही तुम विपत हरी |
कलु काल में रखिया कीनी, दरश तुम्हारे पाप टरी |
कानों में कुण्डलखूब विराजे, मृग राजे ज्यों नैन करी |
कट पट पाग माथे पर कलगी, जग मग झालर लाल जड़ी |
लाल भाल पे तिलक बिराजे, गल में मोतियन हारि परि |
बाहिन भवट्टे सुन्दर लटके, निर्खत से मन जाय ठरी |
हम हुंभय कृतार्थ स्वामी, शरण पड़े आये तुमरी |
क्या मुख शोभा आख सुनावा, गात गात मत जाये बिसरी |
गगनन घोड़न की असवारी, बाना लाल गुलाल झड़ी |
लाल सरुप अनूप अमर दा, क्या मति शोभा जाए करी |
इस प्रकार जो ध्यान धरेगा, सोई कोई पावे का अमर पुरी |
बुद्ध सिंह आये पड़ो तुम सरनी, दूर ना होवे एक पल घड़ी |
बाबा दूर ना होवो इक पल घड़ी, दूर ना होवो इक पल घड़ी | |

पांच पौड़ी जाप

                     जाप पांच पौड़ी 
         
            पहली पौड़ी
ओउम श्री अमर दिवान ईसान करे, शोह पल विच दुःख कटेंदा |
देवे लहर निहाल करे च गैभों उछ्लों देंदा |
जादम सेवा कर दरिया दी, तुरंत मुराद पुजेंदा |
खावंद पूरा लंगर दी साईं, बहिदा वह हमेशा दूला खूटे नहीं  किदांई |
तुद विच हीरे मानक मोती लाल जवाहर अंत लहिंदा नाहीं |
जादम सेवा कर दरिया डी मैं बरदा तू साईं |
जंगल दे विच पीर प्यारा जल थल बहिर आऊंदा |
घोड़ा सहित प्लान दसीवे, सब कोई दरिया कहंदा |
जादम सेवा कर दरिया दी, गीत साहिब गुण गांदा |
खावंद तू लंगर दा पूरा, देवें ते दिलवाएं हमेशा लाल रत्ता रंग गूढ़ा |
भरे भरावे, उल्ट उलटावे छोड़े नही अधूरा |
जादम सेवा कर दरिया दी साहिब नाल हजूरा |
तूं  दरिया नदियां दा राजा, तहं जिहा न कोई |
आस पुजाएना पल्लू पैनाएं सिमरे लोक सभोई |
जादम सेवा कर दरिया दी खाली गया ना कोई |
तू दरिया दे विचों लख्सहंस नाले हो चलन, लख चोरासी जून उपाई आस तेरी ते पलन |
कई सहे जोगी जती तपीसर, मंग मुरादां वलन |
जादम सेवा कर दरिया दी दात पल्लु पै झलन |
जिस दे सिर ते नाम अमर दा, सो क्यों कायल थीवे, औखी वेले जित्थे अराधिया हाजर लाल दसीवे |
सेवक संदे कम स्वारन, हसीया फिर वसीवे |
थावरजे उडेरा करे सितारी, तोड़े सेवक सदा भुलीवे |
ज्यों जाने त्योंकज उडेरा, मैं तेरे कजे कज काजीवां |
निर्गुणीयां गुण पर्वत दिसे, गुणिया कायल थीवां |
फिर जीवाएं वसाएं निम्न, जग तेरे नाम सदीवां |
जे दुख भंजन नाम तुसीहा, दा कर निर्वाह असां |
कर खसमाना लाई न फुर्सत, फेरी नज़र असां |
नाम निशान तुहिदे दर ते मैं बंदी कैदर वजां |
थावर जे असी औगुण हरे, औड़क शर्म तुसां |
जिस दे अंग करे उडेरा, तिस दे बख्त सवलें |
इक घड़ी विच तख़्त बिठैनाए, जर ना होबसू पल्ले |
वेख पराईयां चंगीयां वस्तु, जिस दा जीव ना हले |
आवर थावरे दर तेहि पहुंचे, धर्म जिनां दे पल्ले |
धर्म जिन्हां दे पल्ले होवे, चिंता मूल ना लागे |
धर्म जिन्हां दे पल्ले होवे, खुरी ते खेप ना लगे |
धर्म जिन्हां दे पल्ले होवे, कई जुग आलम बगे |
आवर थावर ऐथे ओथे धर्म धरेसी, ज्यों सोने नूं कट ना लगे |
जैहदी प्रीत लगी हरी सेती, सो राम जपन हर वेले |
इक राम जपन ते बहु खुश थीवन, इक फिरन दर दर दीलें |
इक थीवेरन विंच झूझन, इक मुड़ कर फिरन वसीले |
मुडन मुनासिब थावर नाहि, जे शोह चड़या अराकी नीले |
जैं को छाप अमर दी होवे, सो क्यूँ एदर बंजे |
अमर कोलों शोह बड़ा न कोई, दुःख सभौई भन्ने |
दृढ़ प्रीत जिस सेवक दी होसी, अमर कमाई तिन्हां दा च मने |
दास गोबिन्दा जग हुआ चानना, रतन कंवल घर कंवल उपन्ना पौड़ी ||
 

                 दूसरी पौड़ी

नमस्कार गुरुदेव स्वामी, सर्व व्यापी अन्तर्यामी |
गुरु दरिया परम सुख सागर, श्री अमर लाल पूर्ण रात्नागर |
नमो नमो देवन के देवा, नमो नमो प्रभु अलख अभेवा |
नमो नमो जलपति अविनाशी, नमो नमो घट घट के वासी |
जल से उपज्यो सब संसारा, जल स्वरुप ठाकुर करतारा |
जल है सब जीवन का जीव, गुर दरिया सकल को पीव |
जल है गोपी, जल है कहाँ, जल है मात पिता भगवान |
ब्रहमा विष्णु महादेव, श्री अमर लाल की करते सेवा |
जल गंगा जल जमुना जान, अठ सठ तीर्थ जल प्रवाण |
जल उपजावे, जल पृत पाले, जल ही सबकी सार सम्भाले |
जल ही रूप रंग बन जावे, जल ही नाचे जल ही गावे |
जल ही देखे जल ही बोले, जल ही अघम अगाध अमोले |
जल की सेवा जल की पूजा, एक निरंजन अवर ना दूजा |
जल परमेश्वर जल नारायण, जल सतगुरु जल मुक्त करायण |
जल में परमेश्वर का वसा, जहाँ कहाँ पूर्ण पुर्ख विधाता |
जल का धयान जोत की सेवा, श्री अमर लाल प्रभु अलख अभेवा |
चार खानी में जगत समाया, जल आधार सब दीसे माया |
जल पूर्ण आतम दरिया, अज अविनाशी रहया समाया |
जल है सब राजन का राजा, जल है सब साजन का साजा |
जल है सब शाहन का शाह, जल दाता जल बे परवाह |
जल की कीमत कहीं न जाये, वेद पुराण रहे गुण गाय |
पानी पिता जगत का मीत, धरती माता परम पुनीत |
दिवस रैन दूई दाई दाया, सब जग खेलत धंदे लाया |
श्री अमर लाल परमेश्वर प्यारा, सकल जगत का सृजन हारा |
धर्म राय है तिस के आगे, कर्म किये का लेखा मांगे |
चित्र गुप्त तिस लेखन हार, पाप पुण्य लिख करत पुकार |
जैसे कोई कर्म कमावे, तैसे जैसे फल को पावे |
श्री अमर लाल का सेवक दास, सिमरन भजन करन दिन रात |
मुक्त निशानी जिन के हाथ, चित्र गुप्त तिस पूछत नाही, धर्म राय डर पये मन माहिं |
धर्म राज के कागज़ सिंकारे, मुक्त भये जिन सिर पर धारे |
जिन्हां अराधिया जल पति लाल, केती छुटी् तिन्हां दे नाल |
सो सेवक जिस ह्रदय बसाये, श्री अमर लाल प्रभु होत सहाय |
मुझ अनाथ पर कृपा कीजो, सिमरन भजन दया कर दींजो |
तुझ को सिमरू प्रीत लगाये, श्री अमर लाल प्रभु होत सहाये |
उठत बैठत चलत लाल जी, तुमरा ध्यान नित रहे दयाल जी |
जब सोऊ तब ह्रुदय राखू , जब जागु तब रसना भाखु |
निस दिन रहे तुम्हारा धयान, कर कृपा मोही दीजो दान |
तूं ही अमर तू ही ब्रहमा सरुप, तू ही जलपत तूं ही आत्म रूप |
तूं ही पानी तूं ही गुरु दरया, पतत उदाहरण तेरो नाम |
तूं ही राम तूं ही कृष्ण कहायो, सन्त उबारन दृष्ट खपायो |
तूं ही उडेरा कल युग माही, रक्षा कीनी भयो सहाय |
महिमा तुमरी अपरम अपार, वेद पुरान न पायो सार |
श्री अमर लाल सिमरो बनवारी, दास पुजारा शरण तुम्हारी आया पौड़ी ||

                               तीसरी पौड़ी


गुरु कृपा ते पौड़ी कीनी, कर डंडोत चरण में लीनी |
रैन दिनां गुरु अपना ध्यावै, हुए अचिंत परम पद पावे |
अंडज जेरज जल से होई, जल समान अवर न कोई |
ज्योति सरुप है गुरु मेरा, ताकि चरनन करूं बसेरा |
एक गुरु छोड़ ओर गुरु ध्यावे, सातो नर्क के ठोर ना पावै |
जग सारा ओह भरमत फिरे, फिर फिर आये जूनी में पड़े |
लाख चौरासी जून उपाये, तो बिन सतगुरु के मुक्ति न पाये |
गुरु मेरा देवन का देव, सेवक लागा तुमरी सेव |
गुरु का सिमरन कर मेरे भाई, अंत समय तेरा होत सहाई |
यम्दोतन से लियो छुड़ाये, सतगुरु मार्ग दिया बताये |
सतगुरु मोह पर अमुग्रह कीना, उल्टा कमाल सीधा कर लीना |
इस कमाल में उपजो ज्ञान, गुरु परमेश्वर एक समान |
इस विध के कोई ऐब ना खोल, सतगुरु मैनुं रख चरना दे कोल | पौड़ी |

                      पौड़ी चार  

बाबा जिन्दा कर्म कारिन्दा, कर्म कारिन्दा साईं |
तुझ बाझों मेरा अवर ना कोई, मैं कैह डर कूक सुनाई |
तू लहरी बहरी दा दाता, इक मैनू वी लहर दिखाई |
कई लख सवाली डर तेरे ते, तू हार दी आस पुजाईं |
चार कोटि में नाम तुम्हारा, रोज कयामत ताई |
उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, सेवक सब किथाई |
पावाँ पल्लू ते माँगा मुरादां, तू हार दी आस पूजाई |
निर्धनां नू तूं धन देंदा, निपुत्रा पुत्र दिवाई |
हूं मसकीन डर खड़ा सवाली, दर्शन दान मंगाही |
दर्शन तेरा दुर्लभ लालन, बिन भागां मिलदा नाहीं |
कंचन कोट बने तेरे बंगले, विच हीरे लाल जड़ाई |
लाल पगूड़ा घाडू घड़िया, हीरे लालां जवाहर जड़िया, विच झूटन लालन साँई |
लाल सरुप अनूप अमर दा, क्या मुख शोभा आख सुनायी |
जगमग जोत अमर तेरी जगे, हार दं सांझ समायी |
नानक दास कबीर जुलाहा, तिन भी दर्शन पाया |
कर जोड़ तेरो डंडवत किनी, आकर शीश निवाया |
रविदास चमार हिजल जटेटा, तिन भी दर्शन पाया |
चारे सेवक रंगन रते, जोती जोत मिलाया |
और लख फिरे ढूढेंदी, जिस सिमरया उस पाया |
बुध सिंह सेवक दास तुम्हारा, शरण तुमारी आया |
कर जोड़ तेरी डंडवत कीनी, चरनी सीस निवाया |
 

                        पौड़ी पांच

बाबा जिंदा गुरु हमारा, जां का जग में सकल पसारा |
सकल सृष्टि जल से हुई, जल बिन कारज सरे ना कोई |
देवी देवा जल को ध्यावे, अलख पुरख का ध्यान लगावे |
अलख पुरख है ज्योति सरूप, जल हरि का कोई रेख ना रूप |
कंवल रूप में वर्णन करूं, जल का ध्यान मैं ह्रदय धरूं |
जल है सकल जीवन को जीव, थिर चरनाँ का जल ही पीर |
जल हर जीत का भेद न कोई, पूरन जोत जल से होई |
जल है तीन भवन का राजा, दुःख निवार गरीब निवाजा |
सकल सृष्टि जल से होई, जल समान अवर नहीं कोई |
जिन्दे का दर्शन मामक पाया, तभी बाबा नाम धराया |
दर्शन पाए होय ब्रह्म गियानी, पूरन जोत से जोत मिलनी |
भजन करो अलख करतार, ताकि शोभा सकल संसार |
दूजा दर्श कबीरे पाया, देह संयंक्त बैकुन्ठ सिधाया |
पूर्ण जोत से खला हजूर, चौड़ी ढाले दास कबीर |
जो कोई जल के दामन लागा,ताका दुःख भरम भय भागा |
बुध सिंह आये पड़ा तो सरनी, निश्चिय रख, रख मोहे तरनी |
सतगुरु मुझ से ऐसी कीनी, विपत काल सहता तुम दीनी |
उस सहता से भय खुशहाली, पूर्ण सतगुरु मेरे वाली |
                        || दोहा ||
      गुरु चरनी चित लाए रहो, तो उपज्यो सुख चैन |
      सतगुरु दीन दयाल है, मन बाछ्त फल दें |
      पूर्ण दर्श दिखाए के,  मेटे आवा गमन ||
      यम से लियो छुड़ाये के राखयो अपनी सैन |   

साईं झूलेलाल चालीसा

                   ||श्री झूलेलाल चालीसा ||

                    नित्य प्रति पढ़े, प्रेम प्रीत चित ले |
                 ताके कार्य सफल करें, श्री झूलेलाल जाय ||

                          || दोहा ||
जय जय जय जल के देवता, जय जय ज्योति स्वरुप |
             अमर उदेरोलाल जय, झूलेलाल अनूप ||

                         || चौपाई ||
रतनलाल रतनानी नन्दन, जयति देवकी सुत जग वन्दन |
दरियाशाह वरुण अवतारी, जय जय लाल साईं सुखकारी |
जब जब होए धर्म की भीर, जिन्दा पीर हरे जन पीरा |
संवत दस सौ सात मंझारा, चैत्र शुक्ल द्वितीय शुक्र वारा |
ग्राम नसरपुर सिन्ध प्रदेष, प्रभु अवतारे हरे जन क्लेशा |
सिन्धु वीर ठट्ठा रजधानी, मिरखशाह नृप अति अभिमानी |
कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी, यवन, मलिन मन, अत्याचारी |
धर्मान्तरण करे सब केरा, दुखी हुए जन कष्ट घनेरा |
पिटवाया हाकिम ढिन्नढोरा, हो इस्लाम धर्म चहुओरा |
हिन्दू प्रजा बहुत घबराई, इष्ट देव की टेर लगाई |
वरुण देव पूजे बहुभांती, बिन जल अन्न गए दिन राती |
सिन्धु तीर सब दिन चालीसा, घर घर ध्यान मनाए ईशा |
गरज उठा नद सिन्धु सहसा, चारों ओर उठा नव हरषा |
वरुणदेव ने सुनी पुकारा, प्रकटे वरुण मीन असवारा |
दिव्या पुरुष जल ब्रह्म सरूपा, कर पुस्तक नवरूप अनूपा |
हर्षित हुए सकल नर नारी, वरुणदेव की महिमा न्यारी |
जय जयकार उठी चहुंआरा,गई रात आने को भौंरा |
मिरखशाह नृप अत्याचारी, नष्ट करूंगा शक्ति सारी |
दूर अधर्म, हरण भू भरा, शीघ्र नसरपुर में अवतारा |
रतनराय रतनानी आँगन, खेलूंगा, आऊंगा शिशु बन |
रतनराय घर खुशी है आई, झूलेलाल अवतारे सब दे बधाई |
घर घर मंगल गीत सुहाए, झूलेलाल हरन दुःख आए |
मिरखशाह तक चर्चा आई, भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई |
मंत्री ने जब बाल निहारा, धीरज गया ह्रदय का सारा |
देखी मंत्री साईं की लीला, अधिक विचित्र विमोहन शीला |
बालक दिखा युवा सेनानी, देखा मंत्री बूढी चाकरानी |
योधा रूप दीखे भगवाना, मंत्री हुआ विगत अभिमाना |
झूलेलाल दिया आदेशा, जा तव नृपति कहो संदेसा |
मिरखशाह नृप तजे गुमाना, हिन्दू मुस्लिम एक समाना |
बंद करो निज अत्याचार, त्यागो धर्मान्तरण विचारा |
लेकिन मिरखशाह अभिमानी, वरंदेव की बात न मानी |
एक दिवस हो अश्व स्वर, झूलेलाल गए दरबारा |
मिरखशाह नृप ने आज्ञा डी, झूलेलाल बनाओ बंदी |
किया स्वरुप वरुण का धारण, चारो ओर हुआ जल प्लावन |
दरबारी डूबे उतराये, नृप के होश ठिकाने आए |
नृप तब पड़ा चरण में आई, जय जय धन्य, धन्य जय साईं |
वापिस लिया नृपति आदेशा, दूर दूर सब जन क्लेशा |
संवत दस सौ बीस मंझारी, भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी |
भक्तों की हर आधी व्याधि, जल में ली जलदेव समाधि |
जो जन धरे आज भी ध्याना, उनका वरुण करे कल्याणा |
    चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
    पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ||

साई झूलेलाल जाप

                               जाप
 
                     श्री अमर लाल दा
प्रथमे नमस्कार गुरु  देवा, उतम अलख निरंजन देवा |
नीरभउ पुरख नीरभउ स्वामी, अमर अजूनी अन्तर्यामी |
अकाल मूरत निरंजन राइया, जोती सरुप प्रभ सरब समाया |
सतचित आनंद रूप अरूप, अति अबनास निहचल रूप |
अमर लाल प्रभ कृपा धारी, नाम नाम नित जपहु मुरारी |
वरुण देव नदियां का राजा, सगल जगत जिन कीयो साजा |
गुर दरया ओ सरब का दाता, अमर लाल सब थाईं जाता |
माणक मोती हीरे लाल, लहर भरे सो रहे निहाल |
जल महिं जोत जोत जल माहीं, ओतपोत दूजा को नाही |
अमर लाल प्रभ कृपा करे, दूजी मति सब मनते हरे |
जल महि परमेश्वर का वासा, सगल जगत जल है परगासा |
जलते उपज्यो सब संसार, अमर लाल पूरन करतार |
गुरु दरयाओ स्वामी मेरो, मैं अनाथ प्रभु तुमरो चेरो |
अमर लाल मैं शरण तुम्हारी, रक्षा करो पुरख हमारी |
अमर लाल बलिहारी मीत, आठ पहर सिमरहु कर प्रीत |
अमर लाल के भरे भण्डार, सर्ब जिया पूरण पृतपाल |
जल नारायण जल हे गोबिन्द, जल ही माधो जल हे मुकिंद |
जल की सेवा जल की पूजा, एक निरंजन अवर न दूजा |
जल गंगा जल कांशी मानो, अठसठ तीरथ जल ही जानो |
अमर लाल पूरण सुख सागर, आदि जुगादि ब्रहमा रतनागर |
सब किछ जल से उत्पति होए, जल बिन कारज सरे न कोए |
जल ही नाचे जल ही गावे, जल ही ताल मृदंग बजावै |
जल है पूरक जल है नारी, जल है जोगी जती घरबारी |
जल है मोनी जल है ध्यानी, जल है पंडित जल है ज्ञानी |
अमर लाल तुमरी शरनाइ, जहां कहां जल रहियो समाए |
जल में ही बसे आप निरंकार, सचा तखत साचा दरबार |
मैं भुला तू बख्शन हार, मैं मांगू तू देवण हार |
अमर लाल जोत जगमगे, सूरज कोटि देख सब लजे |
चमत्कार जोत का भरा, कई कोटि दीपक करे उजाला |
ब्रहमा विष्णु महेश त्रइ देवा, सगले करदे तेरी सेवा |
सगल देवता आस भवानी, अमर लाल का जाप जपानी |
अमर लाल प्रभ गहिर गम्भीर, पास वडेरा पुरुष वजीर |
अंतरयामी सब किछ जानै, अन बोलत ही हाल पछानै |
सरब जीया का सार संभालै, अमर लाल सब ही पृतपालै |
जैसी मनसा कर कोई आवै, तैसा ही फल सहजे पावै |
अमर लाल बलिहारी तोंही, भजन आपना दीजै मोही |
सदा भजऊं मम तुम को मीत, तुम चरनां सिऊं लागी प्रीत |
जो जन जपे तुम्हारा नाम, सिमर सिमर पावे बिसराम |
तू दरियाओ जगत तुझ माहीं, हे प्रभ जो तुझ बिन कछु नाहीं |
अठ सठ तीरथ का अश्नान, जो जन करे तुम्हारा ध्यान |
अमर लाल का जपिये जाप, दुःख रोग बिनासै संताप |
ज्ञान तुम्हारा सब दुःख बिनासै, कोटि जनम के पातिक नासै |
जो जन करे अमर की सेवा, सो जन खावे मीठा मेवा |
जो जन जपे अमर दरियाओ, मुक्ति होए भउ काल न खाउ |
जल पति जिन्दा जाहिर पीर, थलाँ टोहां विच निर्मल नीर |
अलील पुरुष पानी दरियाओ, ज्योति सरुप प्रभ रिहा समाए |
ब्रह्म रूप उतम जो पानी, जगत तरंग तुम आन समानी |
अमर लाल मैं बलि बलि जाऊं, कर कृपा तुमरा जस गाऊं |
आसाओ आवनि ते फल पावन, तुमरे दरि बिरथा नहीं जावन |
एक पुरख आया कर आस, अमर लाल जल पत के पास |
तुम सुन हो पूरन पृतपाल, मेरी आस पुजावो लाल |
दूध पुत्र धन माया दीजै, एह कारज मेरा सब कीजै |
बैठ रिहा दरियाओ किनारे, दरियाओ दरिओं मुखहुँ उचारे |
अन्न ना खाया पानी न पीता, आठ दिवस ऐवें ही बीता |  
तब दरिओं सिउ बनी आई, जो तू अजहुँ पर्ण नाही |
बिना नार सूत कैसे होए, नार परनिउ सूत भी तुम होए |
धन माया ढूढ़ ही तुम लेऊ, नार परनिउ सुत भी तुम देउ |
तब उन पुरख वचन उचारिया, अमर लाल सो गुर हमारिया |
बिना नार सूत दीजै मोहे, तब मैं दाता जानू तोहे |
जब उन ऐसी बात उचारी, तब दरियाओ प्रभ कृपा धारी |
दरियाओ लैहर सिउ बालक धरिया, सुन्दर बालक बाहर आई पड़िया
तब उन बालक लिया उठाए, कपड़े बीच लपेटिया जाए |
बालक देखिया परम अनूप, सोहनी सूरत सुन्दर रूप |
               दोहरा;-
 सज्जे हाथ अँगूठड़ा, बालक पेवे खीर |
मन में निश्चे जानिओ ए दोनों गुरु पीर ||
                  चौ॰:-
पूरण एक प्रभ कला जनाई, माया ने एक लहर दिखाई |
सोना रूपा हीरे लाल, माणक मोती रतन रसाल |
माया देखी अपर अपार, अमर लाल के भरे भण्डार |
सरब जियां पूर्ण पृतपाल |
जैसी उनके मन में आई, माया लालन ते तृप्त अघाई |
पांच गऊ निकसिया विच नीर, पांचो के थन तृप्त जो खीर |
जो उन मांगिया सो उन पाया, अमर लाल प्रभ दान दिवाया |
दूध पुत्र धन माया पाई, अमर लाल प्रभ दात दिवाई |
लेकर अपने घर को गया, अमर लाल प्रभ कीन्ही दया |
ऐसा दाता अमर गुसाईं, सदा रहूँ मैं तुम शरनाई |
सुनहौ बालक भया जवान, सुमरे अमर लाल भगवान |
हे भगवान दे बालक मीत, सदा आनंद निहचल रीत |
पिता पूत दोनों वडभागी, जाकी प्रीत अमर सिउ लागी |
जो एह कथा सुने और गावे, दुःख पाप तिस निकट न आवे |
अमर लाल की कथा कहानी, पढ़ते सुनते सुधरे प्राणी |
अमर लाल से प्रीत जो करे, जन्म जन्म के पाप सब टरे |
जय दरियाओ अमर गुरदेवा, जल प्रभ जिन्दा अलख अभेवा |
मैं अनाथ प्रभ शरण तुम्हारी, ठाकर दरियाओ बख्श लै उपकारी |
जाप श्री अमर लाल जी का जो नर पढ़ै,
चित धरे, भवसागर तर जावै |
बिना जोग ततहे, बिना जोग ततहे, बिना जोग ततहे |
जाप श्री अमर लाल जी का सम्पूर्ण हुआ |
       श्री दरियओ जी सत् है |

Tuesday, September 24, 2013

Thakkar Guru Pugar Sai

We all know about Sai Jhulelal( Varun Avtar).But do you know who wasThakkar Pugar Sai ?He was the paternal uncle of Lord Jhulelal who was awarded 'Guru Gaddi' by Lord Jhulelal himself because of his selfless love for Lord Jhulelal.There is small story regarding this. Lord Jhulelal had two brothers 'Soma Rai' and 'Bhedu Rai'. When Lord Jhulelal had finished his motive of Punr Dharam Asthapan for which he had come to this world, he had offered his brothers the divine 'Guru Gaddi' for disseminating and spreading his teachings to the world.But Lord's brothers refused to accept 'Guru Gaddi' by saying that this is 'beggars work' and that does not match their standard. So Lord Jhulelal has given this divine 'Guru Gaddi' to his loveable disciple 'Sant Pugar Rai'. He was the First 'Thakkar' or 'Thakkur' that means 'Priest'. His birth sub caste was Tinya.Lord Jhulelal has also given 7 divine symbolic things to Thakkur Pugar.These seven are from the essential elements of the Daryahi Sect.These 7 things are Deg( Utensil to make sacred Prasad), Teg( Sword), Sacred Fire(Jyot), Divine Mudra(Ring), Jal ki Jhari(HeavenlyWater in a Pot), Sacred Khintha(Palav a Sacred Cloth), Vishnu Cheera( A Head Wearable).Lord Jhulelal blessed Guru Pugar with eighteen Nidhi's and Sidhi's, five Sacred Fires, Powers to give life blessings and death curse.
                               With times popularity of Thakkur Guru Gaddi reached at the peak. So Soma Rai and Bhedu Rai realized their fault.They went to Guru Pugar and asked him to leave the Diivine place of Jyoti Sthan and said being brothers of Sai Jhulelal 'Guru Gaddi' is their right. Guru Pugar ji sofetly left to home.He prayed Lord Jhulelal looking into water on land's surface.Lord Jhulelal, Jal Jyoti Brahm was now apparent.Guru ji told Lord about the matter.Lord then called his brothers Soma Rai and Bhedu Rai. Lord then scolded his brothers and told them that Sant Pugar could have given them curse and ruin their life but he did not do so.Soma Rai and Bhedu Rai felt sorry and begged to Lord Jhulelal to give them also 'Guru Gaddi'. Lord gave them 'Divine Jyoti', a Sacred Fire and told them to make Jyoti Sthan and Worship Jal Jyot and Brahma and pay regards to Thakkar Pugar Sai.With time poeple will also follow you.
                            With time descendent of Soma Rai and Bhedu Rai are Called to be 'Somai Thakkar' and descendent of Thakkur Guru Pugar Rai are called 'Budhai Thakkar' in the name of 'Budha Lal', son of Thakkar Pugar sai. These days also descendents Thakkurs are serving Guru Gaddi in differentnt parts of India and also in Pakistan's Sindh.People respect them and take 'Naam Daan' from them. 

Tuesday, April 5, 2011

बधाई

चेटीचंड और विक्रमी संवत २०६८ ( हिन्दू नववर्ष) की लाख लाख बधाई !!!!